मई 2023: भारतीय समाचार चैनल — लापरवाह और चिढ़ाचिढ़ा क्यों?

मई 2023 में हमने एक साफ सवाल उठाया: समाचार चैनल क्यों अक्सर तेज, चिढ़चिढ़ा और तथ्यों से दूर दिखते हैं? ये सिर्फ शैली का फर्क नहीं है। ये व्यवहार देखने वालों की समझ और लोकतंत्र दोनों के लिए समस्या बन रहा है।

सबसे पहला कारण सीधा है — टीआरपी की होड़। चैनलों को लगातार दर्शक चाहिए। क्या आपने नोटिस किया कि छोटी-सी खबर भी बड़े शो में बदल जाती है? इसी दौड़ में तेज़ी से बोलना, शोर और बार-बार वही क्लिप दिखाना प्रभावी माना जाता है। पर असर होता है कि खबर पर मिलने वाला समय कम होता है और तथ्य जाँच छूट जाती है।

टीआरपी, विज्ञापन और व्यवसायिक दबाव

विज्ञापन और कॉमर्शियल दबाव भी बड़ा कारण है। चैनल बुनियादी खर्च निकालने के लिए ज्यादा व्यूअरशिप पर निर्भर होते हैं। जब इकोनॉमी और एड रेवेन्यू जुड़ा हो तो संवेदनशील खबरें भी सेंसेशन बन जाती हैं। कई बार एडवर्स्टर या प्रमोशन प्लान्स के कारण संपादन में रुकावट आती है।

24x7 न्यूज़ चक्र का दबाव भी अलग है। हर घंटे नया कंटेंट चाहिए, इसलिए रिपोर्टर और एंकरों पर जल्दी में खबर छोड़ देने का दबाव रहता है। सोशल मीडिया पर लाइव अपलोड और अनवेरिफाइड क्लिप सीधे चैनल की स्क्रीन पर आ जाती हैं — और दर्शक सही-गलत पहचान नहीं पाते।

नैतिकता, रिपोर्टिंग की जल्दबाज़ी और क्या बदलना चाहिए

पत्रकारिता की नैतिकता कमजोर पड़ती दिखती है। फेक रिपोर्ट, चेहरा-बाज़ी और बिना स्रोत वाला दावों का प्रयोग बढ़ गया है। समाधान सादा है: तथ्य-जाँच टीम, स्रोतों की पारदर्शिता और खबरें डालने से पहले कम-से-कम बेसिक वेरिफिकेशन।

दर्शक भी जिम्मेदार हैं। क्या आप हर ब्रेकिंग हेडलाइन पर कूद जाते हैं? बेहतर होगा कि एक-दो भरोसेमंद स्रोत चेक करें, सरकारी रिलीज़ या प्रत्यक्ष साक्ष्य देखें, और तुरंत साझा न करें। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो का संदर्भ खोजना आदत बनाइए।

चैनलों के लिए व्यावहारिक कदम: रिपोर्टिंग के लिये टाइम-बफर रखें, एंकर-रोस्टर में बदलाव कर थकान घटाएँ, और लाइव-टैग के साथ "अनवेरिफाइड" लेबल लगाएँ। विज्ञापन राजस्व मोडलों पर सोचें ताकि तथ्य-पुष्टि को प्राथमिकता देना संभव हो।

मई 2023 की पोस्ट यही बताती है कि समस्या जटिल है पर सुधरने योग्य भी है। हम सवाल पूछते रहें और चैनलों से स्पष्टता मांगें। फिलहाल, खबर देखते समय धैर्य रखें और स्रोत पर ध्यान दें—यही सबसे असरदार तरीका है।

भारतीय समाचार चैनल इतने लापरवाह और चिढ़ाचिढ़ा क्यों होते हैं?

भारतीय समाचार चैनल इतने लापरवाह और चिढ़ाचिढ़ा क्यों होते हैं?

  • मई, 10 2023
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भारतीय समाचार चैनलों के लापरवाह और चिढ़ाचिढ़ा होने के कई कारण हैं। सबसे पहले, टीआरपी की होड़ में ये चैनल अक्सर संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान नहीं देते हैं। दूसरी बात, पत्रकारिता की नैतिकता की कमी के कारण उन्हें सच्चाई के बजाय सेंसेशन बनाने में अधिक दिलचस्पी होती है। तीसरी बात, प्रतिस्पर्धा के कारण वे अक्सर तुरंत खबर देने की बजाय बिना तथ्यों की जाँच करें उड़ान भरते हैं। इसके अलावा, समाचार चैनलों के विज्ञापन आय के बढ़ते निर्भरता ने उन्हें व्यवसायिक दबाव में डाल दिया है। इन सभी कारणों के चलते, भारतीय समाचार चैनल अक्सर लापरवाह और चिढ़ाचिढ़ा होते हैं।