नई दिल्ली : (PS) शिक्षकों की भर्ती के बढ़ रहे घोटालों से पूरी शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त होती जा रही है। यह बीमारी अब एक राज्य की न होकर पूरे देश की बन चुकी है। उत्तर प्रदेश में इस समय 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती हेतु सम्पन्न हुई परीक्षा के परिणामों को लेकर घमासान मचा हुआ है। योगी सरकार के कार्यकाल में पहले 68500 शिक्षकों की भर्ती को लेकर अनेक आरोप लगे थे और अब 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती को लेकर मामला एक बार पुन: अदालत में जा पहुंचा है। कौन नहीं जानता कि उत्तर प्रदेश में शिक्षा, शिक्षा माफियाओं का चारागाह बनकर रह गई है। नकल से लेकर भर्ती तक अरबों के घोटाले हो चुके हैं। शिक्षा को तबाह करने के सर्वाधिक संगीन आरोप सपा सरकार पर लगते रहे हैं।
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उम्मीद थी कि योगी सरकार में खासकर शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा पर हालात यह बताते हैं कि सरकार में बैठे लोग व शिक्षा माफियाओं का रैकेट इतना मजबूत है कि उसे तोड़ पाने में फिलहाल अभी तक योगी सरकार भी नाकाम रही है। योगी सरकार के कार्यकाल में सहायक अध्यापकों की दोनों भर्तियों में जिस तरह भारी अनियमितताओं के लगातार सबूत मिले हैं व मिल रहे हैं उसके लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनकी सरकार को बदनाम करने वाले सभी जिम्मेदारों को हर हाल में जेल में डालना होगा।
उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग किस तरह भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों व माफियाओं के चंगुल में फंसकर कराह रहा है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि योगी सरकार की बेहद सख्ती के बावजूद शिक्षकों की भर्ती में अनियमिततायें व भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी नकल माफियाओं के चलते यूपी बोर्ड की परीक्षायें इतनी दूषित व बदनाम हो गई थीं कि लोग इन परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण छात्रों की योग्यता पर भी संदेह रखने लगे थे। नकल माफियाओं का सर्वाधिक नंग नाच सपा सरकार में देखने को मिलता रहा है। परीक्षाओं में नकल की खुली छूट देकर सपा सरकार ने परीक्षाओं की शुचिता का मानो शील ही भंग कर डाला था।
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शिक्षकों की भर्ती का पहला बड़ा घोटाला मायावती शासन काल में 2011 में सामने आया था। जब प्रदेश में पहली बार परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिये अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) कराई गई थी। इस परीक्षा में भी भारी अनियमितता व भ्रष्टाचार को लेकर जो गंभीर आरोप लगाये गये थे उसकी पुष्टि तब हुई जब फरवरी 2011 में लगभग 200 करोड़ के इस घोटाले में माध्यमिक शिक्षक परिषद के तत्कालीन निदेशक संजय मोहन सहित 12 लोग गिरफ्तार कर लिये गये थे। इनके घरों से छापे के दौरान पुलिस ने करीब 97 लाख रुपये नकद बरामद किये थे। इसके बाद सपा की अखिलेश सरकार मे 12460 सहायक शिक्षकों की भर्ती भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई थी। क्योंकि कुछ अभ्यर्थियों की ओर से याचिका दायर करने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भर्ती परीक्षा को ही रद्द कर दिया था।
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योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2018 में 68500 सहायक अध्यापकों की भर्ती भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से अछूती नहीं रह पाई। इस भर्ती को भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। तत्कालीन न्यायमूर्ति ने तो इस भर्ती की सीबीआई जांच के आदेश तक कर दिये गये थे। उन्होंने टिप्पणी की थी ‘सबूतों से इस बात की पुष्टि होती है कि परीक्षा से जुड़े प्राधिकरणों ने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल किया और अपनी पसंद के अभ्यर्थियों को मदद पहुंचायी।’ अदालत ने यह भी कहा था कि इस बार कोड में बड़े पैमाने में गड़बड़ियां पाई गई लेकिन एजेन्सी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। सरकार ने खुद स्वीकारा कि 12 अभ्यर्थियों की कापियां बदली गईं लेकिन एजेन्सी के खिलाफ कोई अपराधिक कार्यवाही नहीं हुई है। हालांकि बाद में योगी सरकार ने अदालत के इस निर्णय को चुनौती दी थी और मामले की सीबीआई जांच भी नहीं कराई गई। बाद में भर्तियां भी की गई थीं।
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जानकार सूत्रों का कहना है कि यदि योगी सरकार ने इस परीक्षा में हुई अनियमितताओं की सघन जांच उच्च न्यायालय के वरिष्ठ जज अथवा सीबीआई से करा ली होती तो शायद अब 2019 की 69000 शिक्षकों की भर्ती परीक्षा में घोटाले की कोई गुजाइंश न बची होती। निश्चित ही योगी सरकार की दूसरी सहायक शिक्षक भर्ती भी विवादों के घेरे में आ गई है। फिलहाल इस परीक्षा का भविष्य इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आने वाले फैसले पर टिका है। यदि अदालत गंभीर अनियमितताओं के मद्देनजर परीक्षा रद्द करती है तो नि:संदेह योगी सरकार की भारी किरकिरी होनी ही है। साथ ही शिक्षक बनने के लिये दिन-रात कड़ी मेहनत करने वाले उन युवाओं का भरोसा सरकार व परीक्षा प्रणाली से उठ जायेगा जिन्होंने मेरिट में स्थान बनाया है।
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सूत्रों का कहना है जिस तरह प्रश्नों के उत्तरों को लेकर विवाद हुआ और सरकार ने पहले एक त्रुटि पर सभी को कॉमन नम्बर दे दिये फिर अन्य प्रश्नों के उत्तरों पर विवाद हुआ तो सरकार ने उन पर गौर करने से मना कर दिया। यदि सरकार ऐसा न करके उन पर भी गौर करती और उचित निर्णय लेती तो फिर मामला अदालत में जाता ही नहीं। इसी बीच जिस तरह अब लगातार इस भर्ती के घोटालों में शामिल लोग पकड़े जा रहे हैं उससे भी सरकार की बदनामी हो रही है। सूत्रों का कहना है कि कहीं बेहतर होगा कि योगी सरकार जिद्द छोड़कर स्वत: पूरे मामले की सीबीआई जांच कराये और प्रश्नों के गलत उत्तर तय करने से लेकर मोटी रकम लेकर अभ्यर्थियों को अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कराने वालों को बेनकाब कर उन्हें जेल भेजे। अब भी योगी सरकार ने ऐसा न किया तो फिर शिक्षक भर्ती घोटाले के बड़े चेहरों से नकाब हटना कभी संभव नहीं होगा। जैसी की चर्चायें चल रही हैं इस घोटाले में भी बड़े चेहरे शामिल हैं क्योंकि बिना उनके संरक्षण के सब कुछ बेहद नियोजित तरीके से संभव ही नहीं है।
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