दिल्ली में अन्य राज्यों के मरीजों के इलाज पर रोक के फैसले पर लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने लिखा दिल्ली मुख्यमंत्री को पत्र, फैसले को बताया अंसवैधानिक एवं तुगलकी फरमान,फैसला वापिस नहीं लेने पर दी जरूरी सामग्री के रोक की चेतावनी ।
गाजियाबाद : [टाईम फॉर न्यूज़–प्रभात तिवारी] दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा अन्य राज्यों के मरीजों के इलाज दिल्ली में नहीं किए जाने फैसले पर लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने पत्र लिखकर फैसले को असंवैधानिक और तुगलकी फरमान बताते हुए वापिस लेने को कहा है। साथ ही विधायक ने कहा ऐसा नहीं किए जाने पर मजबूरी में दिल्ली का पानी, दूध और शब्जी रोकने की चेतावनी दी है।
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विधायक ने पत्र में कहा कि अवगत कराना है कि राजनीति से प्रेरित होकर दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली के सरकारी एवं निजी अस्पतालों में अन्य राज्य के मरीजों के इलाज पर रोक लगाने संबंधित जो तुगलकी फैसला लिया है वह असंवैधानिक एंव संघीय ढांचे पर हमला है। आपकी सरकार द्वारा पूर्व में भी इस तरह का सर्कुलर जारी किया गया था जिसपर एनसीआर व अन्य राज्यों के नागरिकों के विरोध पर माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेकर दिल्ली की सरकार को फटकार लगाते हुए इसे असंवैधानिक करार देते हुए इसे सीधे-सीधे जीने के अधिकार (अनुच्छेद 21) और समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन बताया था। सुप्र्रीम कोर्ट ने आपके ही जैसी संकीर्ण मानसिकता व सोच रखने वाली पश्चिम बंगाल की सरकार को भी ऐसे ही फैसले पर जुर्माना लगाकर फटकार लगाई थी ।
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लेकिन भारतीय न्यायप्रणाली और संघीय ढांचे में आपका अविश्वास और भेदभाव उत्पन्न करने की कोशिश आपके इस तुगलकी फैसले में दिखता है। इस फैसले से आपने न्यायालय की अवमानना के साथ-साथ वैश्विक महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई को भी कमजोर करने का प्रयत्न किया है। इस समय जब देश के यशस्वी प्रधानमंत्री ने पूरे देश को एकजुट कर कॅरोनो महामारी के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक फैसले लिए है ऐसे में आपका तुगलकी फरमान संघीय ढांचे एवं लोकतांत्रिक मूल्यों पर कुठाराघात है। दिल्ली में कॅरोना महामारी के दौरान कई राज्यों के लोग फंसे हुए है और दिल्ली के लोग भी अन्य राज्यों में फंसे है ऐसे में क्या भारतीयता के बोध को मिटाते हुए सभी राज्य एक-दूसरे के राज्यों के नागरिकों का इलाज न करें? क्या उन्हें मरने के लिए छोड़ दे?
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माननीय मुख्यमंत्री जी आप और आपकी पूरी कैबिनेट दिल्ली की मूल निवासी नहीं है। ऐसे में आपको कोई नैतिक अधिकार नहीं है, ऐसे मानसिक दिवालियापन के प्रतीक वाले फैसले लेने का। आप स्वंय बीमार होने पर दिल्ली के अस्पतालों के स्थान पर बंगलौर में इलाज करवाते है। अगर कर्नाटक सरकार ने भी यही फैसला लिया होता तो मान्यवर आपकी खांसी भी ठीक नहीं हो पाती लेकिन यहीं हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान की खूबसूरती है कि पूरा भारत देश के सभी नागरिकों के लिए समानता का भाव रखता है। अब देश में जब कॅरोना महामारी के कारण मृत्युं दर कम है तो उसे बढ़ाने के लिए आप विदेशी ताकतों से सांठ-गांठ कर ऐसे फैसले ले रहे है। मेरा पूर्व में अनुमान की आपके द्वारा मौलाना साद और विदेशी ताकतों के इशारे पर मरकज के द्वारा पूरे देश में कॅरोना महामारी फैलाने की साजिश की गई है, इस फैसले के बाद सत्य साबित हुई है। भारत की संस्कृति ‘‘वसुदैव कुटुबंकम’’ की रही है लेकिन आपने देश के नागरिकों को ही देश की राजधानी के अस्पताल में इलाज से रोककर देश की संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया है। आप एक अच्छे व्यक्ति है बावजूद इसके बार-बार मानसिक दिवालियापन में लिए गए फैसले बताते है कि आपको बंगलौर के बाद यूपी के आगरा अस्ताल की भी सख्त जरूरत है।
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विधायक ने कहा कि कॅरोना के खिलाफ देश की लड़ाई को कमजोर करने वाले अपने तुगलकी, संविधान विरोधी, संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाने वाले राजनीति से प्रेरित फैसले को वापिस लें। दिल्ली के लोग हमारे अपने है लेकिन मजबूरी में हमें दिल्ली का दूध-पानी-खाद्य सामाग्री रोकने का निर्णय लेना पड़ेगा। साथ ही विधायक ने केंद्रीय गृहमंत्री, उपराज्यपाल और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी पत्र से अवगत कराया है।
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